ध्यान- शुरुआत कैसे करूँ? प्रियाभिषेक शर्मा
इच्छा हुई,ध्यान करूँ ! कुछ तो कुतुहल था, कुछ सुना था कि ध्यान चमत्कार – घटित करता है ! पता नही ! मुझे खुद भी कारण का भान नहीं था ! आंखें बंद कर लीं ! पद्मासन में बैठ गया ! मुझे ध्यान के बारे में यही पता था ! विचारों की लहरें दिमाग की दीवारों से टकराने लगीं ! दिमाग एक बर्तन के रूप में प्रतीत हुआ जिसमें जल अन्दर से छलक रहा है ! अपने भीतर इतनी प्रचण्ड उछल को देख कर असहजता का अहसास हुआ ! पल भर के लिये आंखें खोल कर मोल ली विपत्ति से छुटकारा पा लेने का विचार आया !
परन्तु पलायनवादी तो बिलकुल नहीं था ! अगले ही क्षण इच्छाशक्ति को जागृत कर विचारों के प्रवाह को रोकने के प्रयास में मैं लग गया ! उधेडबुन जारी रही ! कुछ समय मन इसी कशमकश में रहा ! अब मैंने आंखे खोली दी! एक सिसकी आयी – आह ! यह क्या था ? मैंने तो सुना था ध्यान शांतिप्रद होता है परन्तु शांति तो कदापि आती कहीं दिखाई नहीं दी ! ध्यान में करें क्या – विचारों को रोकें या उन्हें अपनी राह जाने दें ! मैं दुविधा था !
अगले ही पल मोबाईल उठाकर मैडिटेशन शब्द को गूगल पर टाइप किया एवं देखते ही लाखों साइट प्रकट हो गये ! थोडा शोध किया,समय दिया एवं ध्यान की बाजार में कुछ लोकप्रिय विधियों का पता चला –मांइडफुल मेडिटेशन, हर्टफुल मेडिटेशन, विपासना, कुण्डलिनी आधारित ध्यान, क्रिया योग ध्यान , ट्रान्सडेन्टल मेडिटेशन ,तांत्रिक विधियाँ , एवं न जाने क्या-क्या ! अब तो दुविधा और गहरा गयी ! जानकारी की सुलभता अस्पष्टता लेकर आयी थी ! अब क्या करता ? मन इस सोच में संलग्न था कि कौन सी विधि श्रेष्ठ है ! मैं किसके साथ शुरुआत करूँ ?
यदि आप ध्यान पथ पर जाने के इच्छुक हैं तो इस प्रकार की दुविधा का अनुभव कोई अस्वाभाविक बात नहीं ! इसका क्या व्यावहारिक समाधान हो ? ‘ध्यान सहज है,’ परन्तु एक स्तर तक पथ को तय कर लेने के बाद ! यह तो पी० एच० डी० का पाठ्यक्रम है ! नव आगन्तुक को बताने का क्या तुक ! तो फिर ध्यान क्या है ? इस प्रश्न को कुछ समय के लिए भुला दें ! यह प्रश्न पूछें कि मन क्या है ? ध्यान का सम्बन्ध प्रथम अवस्था में मन की कार्यप्रणाली के प्रति जागृत होने से है ! यह कुछ दार्शनिक हो गया !
मन एक विचारों, भावों, स्मृतियों एवं कल्पनाओं के गुलदस्ते का नाम है ! यह मस्तिष्क का प्रकार्यात्मक या प्रक्रियात्मक अंग है, परन्तु मस्तिष्क के समान मूर्त अंग नहीं ! प्रति क्षण इसमें विचारों का प्रवाह निरन्तर चलायमान रहता है ! ध्यान का प्रथम सोपान इन्ही विचारों को आते – जाते देखना है एक दृष्टता के समान! कहीं पुन: दार्शनिक न हो जाऊं ! व्यावहारिक रूप से इसे हासिल करने के लिये आपको बुलबुला ध्यान की विधि बताने जा रहा हूं !यह वैज्ञानिक तौर पर सिदॄ ध्यान की बहुत प्रभावशाली विधि है ! यह सहज भी है ! ध्यान के मार्ग पर प्रथम पग !इससे अधिक सुलभ नहीं हो सकता ! विधियाँ तो अनेक हैं एवं प्रत्येक सिदॄ है ! परन्तु इनको सीखने के लिए विशेषज्ञ निरीक्षण की जरूरत पड़ती है !बुलबुला ध्यान आप स्वयं भी कर सकते हैं,कहीं भी,घर में,कार में,बगीचे में !
प्रथम चरण – मेरुरज्जू को सीधा करके बैठ जायें ! चाहे कुर्सी पर बैठें अथवा जमीन पर पद्मासन या सुखासन में !
दिॄतीय चरण – आंखें शान्त होकर बंद कर लें ! अपने भीतर प्रवेश करने का प्रयास करें ! अब मन के स्वभाव को जरा देखें! यह या तो भूतकाल की स्मृतियां लेकर आ रहा है या भविष्य की सुखद कल्पनाएं ! प्रतिक्षण विचार ! कोई बात नहीं ! हताश न हों ! इस स्वभाव को बदलने का प्रयास भी न करें !
तृतीय चरण – अब शांत बैठे – बैठे अपने आप को किसी खुबसूरत तालाब में बैठा हुआ महसूस करें ! यह एक कल्पना है जो आप कर रहे हैं ! अब ज्यों ही विचार आये उसे अपने सिर के सर्वोच्च बिंदु से उस विचार को एक बुलबुले के रूप में सतह की ओर जाकर लुप्त होता हुआ देखें !
बुलबुला जल में सतह की ओर जाकर पुन: जल में ही लुप्त हो जाता है !विचार भी बुलबले के ही समान हैं! इनका आना – जाना लगा रहता है ! बुलबुला ध्यान में आप केवल विचार को बुलबुले के समान सिर के उपरी भाग से सतह की ओर जाते रहने की कल्पना कर रहे हैं ! जब कोई विचार नहीं, तो कोई बुलबुला भी नहीं ! यही ध्यान का उद्देश्य है – दो विचारों के भीतर मौजूद अथाह शांति को प्राप्त करना !
इस विधि को प्रतिदिन पन्द्रह मिनट करें ! आरम्भ में अधिक सकारात्मक परिवर्तन की उम्मीद बिलकुल न करें ! नियमितता में ही सर्व रहस्य छिपा है ! पन्द्रह मिनट इसका प्रतिदिन अभ्यास करें ! छ: माह पश्चात इसके परिणाम देखें! चमत्कार एक दिन में घटित नहीं होता ! परन्तु कदापि घटित नहीं होता ऐसा भी नहीं ! आपका जीवन स्वयं चमत्कार बन जायेगा !
Salute to you Sir
From Last one Year I am asking Neem Karoli baba to give me darshan. can you please help me in it?
I want to try it.I am a civil service aspirant and I could not clear Prelims last year because I could not control my mind. Sir, I am follower of Nib Karori maharajji. I learnt somewhere that you have seen him in your dream. I also read your book The UPSC odyssey. can you please help me to get his darshan? Is it possible with meditation? please reply. I have sent u a mail long back and still waiting for reply.